भक्तों पर भगवान की कृपा-bhakton par bhagwan ki kripa

भक्तों पर भगवान की कृपा-bhakton par bhagwan ki kripa



 

भक्तों पर भगवान की कृपा-bhakton par bhagwan ki kripa

यह कथा है भक्त प्रहलाद की भक्त प्रहलाद जन्म से ही ईश्वर की भक्ति में लीन थे क्योंकि उनको जन्म से पूर्व ही गर्भ काल के समय ही देवर्षि नारद भक्ति के रस का रसास्वादन करा चुके थे क्योंकि यह सब पहले से ही सुनिश्चित था कि भक्त प्रहलाद का जन्म के बाद की परिस्थितियां कुछ इस प्रकार की होंगी कई कठिन स्थितियों से उन्हें गुजरना होगा जिससे बच पाना केवल भक्ति से ही संभव है भक्ति ही उनके जीवन का सुरक्षा कवच बनेगी

जब माता कयाधू गर्भवती थी उस समय हिरण्यकश्यप तपस्या करने के लिए बंन चले गए थे उस समय माता कयाधू महल में अकेले थी मौका पाकर इंद्रदेव हाथ में रक्त से सनी हुई तलवार लेकर के उपस्थित हुए और माता कयाधू को घसीट कर बलपूर्वक अपने साथ ले गए इंद्रदेव हिरण्याकश्यप के बल और पराक्रम से पूर्व परिचित थे उनको यह भय था कि कहीं हिरण्यकश्यप उनका सिंहासन न ले ले

इतने में ही देव ऋषि नारद पहुंच गए और इंद्र देव को समझाने लगे कि यह महा भयंकर पाप है इनके गर्भ में एक भक्त पल रहा है और इन्हें मेरे पास छोड़ दो देव ऋषि नारद की बात सुनकर के इंद्रदेव माता कयाधू को नारद जी के पास छोड़ कर चले गए 

नारद जी ने उनको पुत्री की तरह अपने आश्रम में रखा और भगवान के भजन उनका मन बहलाने के लिए नित्य सुनाने लगे जब तपस्या करके हिरण्यकश्यप अपने राज्य में लौटा तब नारद जी ने कयाधू को उनके महल में छोड़ दिया 

प्रहलाद जी का जब जन्म हुआ तो वह गर्भ में रहते हुए जो उनको भक्ति का ज्ञान मिला था वह जन्म के बाद उनके ऊपर प्रभावी रहा 5 वर्ष की अवस्था में प्रहलाद जी को विद्या ध्यान के लिए अमर्क के आश्रम में भेज दिया गया प्रहलाद जी को जो कुछ भी पढ़ाया जाता वह उन्हें याद हो जाता था विज्ञान की समस्त विद्याओं से परिचित थे 

एक बार प्रहलाद जी को बुखार आ गया कई दिन बीत गए बुखार उतर नहीं रहा था जब बुखार होता तब वह शांत होते थे और जब कुछ बुखार धीमा होता तो वे नारायण नारायण ही बोलने लगते थे जब कई दिन बीत गए बुखार नहीं  उतरा तब माता कयाधू को चिंता हुई कि कहीं आश्रम में मेरे पुत्र के साथ कोई अनहोनी तो नहीं हुई है और वह आश्रम पहुंच गई जब पता लगाया तो पता चला गुरुदेव ने उन्हें खूब डांटा पूछा कि क्यों तब उन्होंने कहा कि जब गुरुदेव ने पूछा कि तुम्हारा इष्ट कौन है 

तब प्रह्लाद ने उत्तर दिया मेरे इष्ट तो परमात्मा है सब गुरुओं ने कहा कि तुम्हारे इष्ट  हिरण्यकश्यपु है प्रह्लाद ने कहा कि वह तो हमारे जन्म देने वाले पिता हैं जन्म देने वाला परमात्मा कैसे हो सकता है आपका आदेश शिरोधार्य आप मेरे गुरुदेव हैं लेकिन मैं पिता को परमात्मा नहीं मान सकता परमात्मा तो सर्वव्यापी है उसी के द्वारा समस्त जगत का निर्माण हुआ है

और उसी में ही समा जाता है गुरुवर और मुझे क्षमा करें मैं अपने पिता को कभी अपना इष्ट नहीं मान सकता तब गुरुदेव इन्हें महाराज हिरण्य कश्यप के पास ले गए तब प्रहलाद जी ने वही बातें फिर से दोहराई जो उन्होंने आश्रम में कही थी

तब क्रोध से  हिरण्यकश्यप ने उन पर प्रहार कर दिया जिसका प्रहार वह सहन नहीं कर सके और नारायण नारायण कहते हुए बेहोश हो गए और तभी से उनको ज्वर है तब माता कयाधू चिंतित होने लगी और नारद जी का स्मरण करने लगी इतने में नारद  जी प्रकट हुए है और प्रहलाद जी को अपनी गोद में उठा लिया और प्रहलाद जी का शरीर शीतल हो गया

और उनकी चेतना वापस आ गई है जब यह सूचना दैत्य  गुरु शुक्राचार्य के पास पहुंची तो उन्होंने अपनी तमाम तांत्रिक शक्तियों का प्रयोग करके प्रहलाद जी को क्षति पहुंचाने की कोशिश की लेकिन भक्त प्रहलाद जी को जरा सा भी क्षति नहीं हुई सारी आसुरी शक्तियां विफल रही

भक्तों की हमेशा रक्षा भगवान करता है उस पर किसी भी आसुरी शक्तियों का असर नहीं होता है वह हमेशा निर्भीक और साहसी रहता है क्योंकि उनके रक्षक स्वयं भगवान होते हैं जो कभी भी अपने भक्तों को छति  नहीं पहुंचने देते हैं देते हैं 

भक्ति भक्तों के लिए एक सुरक्षा कवच है ईश्वर की भक्ति अगाध है अपरंपार है उसके द्वारा सब कुछ हासिल किया जा सकता है जिस प्रकार भक्त प्रहलाद अनेक विपत्तियों से बचते चले आए उसी प्रकार आज के जीवन में भी भक्ति के द्वारा समस्त कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है भक्त पर सदैव भगवन की कृपा होती है

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